भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग / तेज राम शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग
चूल्हे में बुझ रही है
जल चुके हैं
छोटे-मोटे लक्कड़
पहले ही

दरवाज़ा खोलता हूँ

देखता हूँ पहाड़ की चोटी से
उतर रही है बर्फ़ानी हवा
बुझाने को
आतुर
आग को
बचे हुए कुछ अंगारों को।