भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
कहीं बाहर नहीं होती वह
हर चीज़ में होती है आग
आत्मा की तरह अदृश्य और जाग्रत
बिरही की तरह बेचैन और आतुर
किसी भी चीज़ को उठा लो कहीं से
ले जाओ उसे आग के पास
स्पर्श होते ही
वह बन जाएगी आग।