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आत्मालोचन / शिवप्रसाद जोशी
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मैं ज़रा अपने ही बारे में सोचना चाहता हूँ कुछ दिन
मुझे अपनी तस्वीर की फ़िक्र है
मेरे पैसे ख़त्म हो गए...
मेरे कपड़े धुले नहीं है
मेरे पास नहीं है कोट
एक भव्य सा लैपटॉप
मेरी चिंता वाज़िब हैं
मेरे बारे में क्या कहना है आपका और सबका
मैं जानता तो सब हूँ
लेकिन टटोलता रहता हूँ
लोगों के मन की बात
अब ये मेरी आदत बन गई है
मुझे अपनी हँसी भी टेढ़ी लग रही है
दूसरों की टोह लेते क्या कोई देखता होगा मुझे
यूँ तो मैं सामान्य सहज रहना जानता हूँ
लेकिन अगर कुछ उलट गया किसी दिन मेरे अन्दर
मेरी आत्मा के खर्राटों से...
भाई मुझे टेंशन होने लगा है
ईश्वर हूँ तो क्या।