आत्मीयता / नरेश अग्रवाल
उसने कितनी आत्मीयता से कहा था,
आपने दावत देने का वादा किया था और नहीं आये
उसके शब्दों में एक मीठा आग्रह था
साथ न बैठ पाने का सहज दुख
और वो जानती थी कि उसका हक मुझ पर कितना कम था
यह मुलाकात एक सुंदर दृश्य की तरह
और उसे सब कुछ भुला देना था।
उस दिन अचानक ही हम एक-दूसरे को अच्छे लगे थे
कोई कारण नहीं था बातें करने का
फिर भी हमारी उत्सुकता ने हमें मिला दिया
वह हंसी थी जैसे पहली बार में ही
अपना परिचय देने को इच्छुक हो
लेकिन मैंने पाया असीम था उसके पास देने को
बातों ही बातों में और अधिक जीवंत होती जा रही थी वो
कोई विवरण नहीं था उसके पास
किसी तरह का कोई स्पर्श भी नहीं
बस अपनी कोमल भावनाओं का इजहार
और मुश्किल हो रहा था मुझसे यह सब कुछ सहना
शायद इसलिए कहा था मैंने उससे
अलविदा! कल फिर मिलेंगे
और आज बस उससे क्षमा मांगने आया था।