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आदत / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
प्रेम हो जाता है
बंद आंखों से,
मन देखे जाते हैं
चेहरे नहीं
फिर पलट जाता मौसम
जैसे हर करवट में
अलग होती है नींद की मुद्रा
पाने से भरता हुआ घट
खोने से रीतता रहता है
करीब आकर लौटते हुए हाथ
पिघलती गर्माहटों के नाम
अजनबियत लिख जाते हैं
मुस्कुरातें हैं
ये साजिश नहीं होती
होता है फासला खुद से
जिसे चौड़ा करती हैं दिन रात
चुप्पियों के फावड़े
तकिए के नीचे नहीं रहा करती
तस्वीर कोई
एक संग होता है आगोश में
जैसे गर्मी और पसीना
बारिश उमस बूंदें
ठंढक स्वेटर दस्ताने
मुलाकातों से पुख्ता हुई जमीन
घूमने लगती है
चेहरा तलाशने पर नहीं खुलता
तहों का ताला जंग लगा
प्रेम हो जाता है
होता रहता है
क्योंकि दिल को आदत है
नम होकर खिलखिलाने की।