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आदमखोर बहेलिया / एस. मनोज
Kavita Kosh से
बहेलिये शिकार की खोज में
टोह नहीं लगाते
शहरों में घूमते हैं सरेआम
अब वे पशु पक्षियों को नहीं मारते
मनुष्य को मारते हैं
मनुष्य को मारना उनके लिए
पशु पक्षी मारने से अधिक आसान है
मनुष्य को मारने की पूरी प्रक्रिया के लिए
उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है
इसलिए बहेलिये अब आदमखोर हो गए हैं।
मानव निरीह पशु के समान
विवश होता जा रहा है
क्योंकि प्रतिरोध के स्वर
सामूहिक विरोध
जन आंदोलन
सामाजिक चेतना
सांस्कृतिक नवजागरण
जीवंत कविताएं
सब कुछ का अभाव है
इसीलिए बहेलिये बढ़ते जा रहे हैं
इसीलिए बहेलिये सरेआम घूम रहे हैं
इसीलिए बहेलिये आदमखोर हो गए हैं।