आन्दोलित अन्धकार / नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती
जो भी कुछ विषण्ण है, वही प्रेम है
जो भी कुछ पाताल में
रुमाल की तरह लहराता है, स्मृति है।
पृथ्वी, अब मैं तुम्हारा चेहरा?
खड़े होने की मुद्रा
आँखों के इंगित, होंठों, गाल ...
जहाँ भी देखता हूँ
केवल एक प्राचीन प्रतिज्ञा की तरह
विषण्ण ही पाता हूँ,
पृथ्वी तुम्हारा नाम प्रेम है।
जो भी कुछ विषण्ण है, वही प्रेम है
जो भी कुछ पाताल में
रुमाल की तरह लहराता है .... स्मृति है।
प्यार, कहाँ है तुम्हारा देश?
तुमने कब प्रवेश किया था पाताल में
क्यों किया था?
लगता है, भूगर्भ के सारे छुपे राज़ जानकर
तुम लौट आना चाहते हो
पृथ्वी के मैदानों की हरीतिमा
और आकाश के नीलेपन में,
इसीलिए पाताल में चल रहा है आन्दोलन
प्रेम, तुम्हारा दूसरा नाम स्मृति है।
मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी