भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इच्छ्या / ॠतुप्रिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे मां सुरसत
ज्ञान दे
म्हूं रचूं सुरीलौ गीत

पणहारण नै
मिलै आपरै
मन रौ चायौ मीत

दु:ख-सुख में म्हूं
रैवूं अेकसी
चौखी रैवै नीत
गमीं में
नां हारूं खुद सूं
जग नै
म्हूं ल्यूं जीत।