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उड़ान / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
बहुत उड़ लिया
वसुन्धरा
नीले-पीले आसमान में
भटक लिया बहुत
वलयदार ग्रहों की दुनिया में
बस, उड़ूँगा एक बार और
उड़ूँगा अन्तिम बार
वसुन्धरा
बाँहें फैला लो अपनी
मैं चाहता हूँ पहली और अन्तिम बार
चाहता हूँ मैं वसुन्धरा
चाहता हूं मैं
तुम्हारी देह के व्योम में
पंख खोलना