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उपरांत / सौमित्र सक्सेना

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मेरे पास एक नथ है
मैंने उसे नदी किनारे की
रेत में पड़ी देखा था

मैं इसे घर ले आया हूँ
अब मैं जहाँ भी इसे रखता हूँ
ये वहाँ धीरे-धीरे हिलने लगती है।

पहले मैने
इसे बिस्तर से सटी मेज पर रखा था
ये खिसक के मेरे सिरहाने आ गिरी
फिर मैने इसे श्रृंगारदान
की चौकी पे रखा
मुझे ये तमाम रंगो में झिलमिलाती मिली

मै इसे रसोई की अलमारी मे रख आया
जैसे ही स्टोव की आग चटकी
खिड़की से धुएँ की लहर टकराई
और सिंक में नल से गिरता पानी
बजा
मुझे लगा
आसपास कोई देह साँस लेने लगी है

मैं इसे आँगन की मिट्टी में
जमीन खोदके गाड़ भी आया था
पर अभी वापस निकाल लाया हूँ न जाने क्यों
जब भी मैं
इस नथ को देखता हूँ
मेरे चेहरे को छूकर कुछ
चुभ के सरकता है

फिर एक बिंधि हँसी आती है
जो मुझे पूरा हिलाकर चली जाती है ।