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उसका देखना / कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
बीमार था भाई और अस्पताल भरा हुआ
खुले आकाश के नीचे
नसीब हुआ उसे किसी तरह एक बेड
बेहद जद्दोजहद के बाद
ऐसा आपातकाल था
ड्रिप की सीली-सी आवाज़ थी जब बुदबुदाया—
हमारे देखने की सीमा तो देखिए !
वह चाँद देख रहा था और तारे
अब उसका बोलना बर्फ़ हो रहा था—
और जमीन पर थोड़ी ही दूरी पर
चलता हुआ आदमी तो ओझल हो जाता है
यकायक हमारी निग़ाह से
भैया, देखिए जरा कितने पेंच हैं इस दुनिया में !
वह बहुत मासूम दिख रहा था और ख़तरनाक तरीके से गम्भीर
अब मैं
उसे बीमार कहकर शर्मिंदा हो रहा हूँ ।