भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एकांत / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
क्यों अलाक्सांदर मेडिटेशन के बाद चुप रहा सारी शाम? नहीं
वह एक-एक किताबों के रैक के पास नज़र आया।
झबरैला कुत्ता, मेरी गद्दी पर सिर रखकर जरूर चुप बैठा रहा।
मैं सोचता रहा बहुत कुछ देख लिया इन दिनों। याद आती
रहेगी पारी की सुबह। याद आती रही पारी की गुलजार सड़कें!
पर इसके लिए डायरी कभी भी लिख सकते हो
अभी देखो एकटक अलाक्सांदर के एकांत को...!