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एक कथा / बद्रीनारायण
Kavita Kosh से
अपने प्रिय को सुनाता हूँ एक कथा
जैसे एक बढ़ई गढ़ता है लकड़ी को
रच देता है काठ का घोड़ा
एक जादूगर आता है और उसे छू लेता है
सजीव हो उठता है काठ का घोड़ा
एक राजकुमार कसता है उस पर जीन
और नीले आकाश में उड़ जाता है
कितने भाग्यशाली हैं हे प्रिय
काठ का घोड़ा, राजकुमार और नीला आकाश
उनसे भी भाग्यशाली है हे प्रिय
लकड़ी को जोड़कर नया संसार रचता
वह बढ़ई
काश मैं भी तुम्हें रच पाता,
तुम एक फूल होती जिसमें खिला होता
मेरा प्यार
तुम सावन की बारिस होती
जिसमें बरसता रहता प्यार
तुम ब्रह्मावर्त से आने वाली मलयनील
होती
जिसमें
महकता रहता प्यार
तुम वो नदी होती
जिसमें छल-छल मचलता होता मेरा प्यार,
मैं कदली बन में खोया
अकेला ढूँढता हूँ तुझे