भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक पैग़ाम / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वही मौसम है
बारिश की हँसी
पेड़ों में छन छन गूँजती है
हरी शाख़ें
सुनहरे फूल के ज़ेवर पहन कर
तसव्वुर में किसी के मुस्कराती हैं
हवा की ओढ़नी का रंग फिर हल्का गुलाबी है
शनासा<ref>परिचित</ref> बाग़ को जाता हुआ ख़ुशबू भरा रस्ता
हमारी राह तकता है
तुलू-ए-माह<ref>सूर्योदय</ref> की साअत<ref>समय या घड़ी</ref>
हमारी मुंतज़िर है

शब्दार्थ
<references/>