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एक शाम / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
यह शाम का मौसम है
सभी चीजें अलग – अलग रूप से दिखाई देती हुई
सामने बोट हाउस की लंबी कतारें
उनमें रहने का सुख जैसे हम इस झील के साथ हैं
और इस झील में शायद पचासों नावें होंगी
सैलानियों को सुखद अनुभूतियाँ दिलाती हुईं
हर पल शाम जैसे हाथ छुड़ा रही हो हम लोगों से
तब तक हम थोड़ी दूरी और तय कर लेते थे
देखता हूँ ये सारे दृश्य गर्व से भरे हुए
उनमें ताकत है हमें सुख देने की
बस हमें उन्हें समर्पित करना भर है अपने आपको