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ऐ इतिहासकारों!! / दीपक मशाल

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ऐ इतिहासकारों!!
तुम जब लिखना मेरे बारे में
तो मेरे बारे में लिखना..
मेरे सच के बारे में
लिखना मुझसे जुड़ी हर बात के बारे में

बेशक लिखना तुम मेरा पराक्रम
मेरी तलवार का दुधारूपन
पर इसकी चमक से अंधे हो कहीं
उन विधवाओं का विलाप न भूल जाना
जो इस धार के द्वारा बनायीं गईं हों...

गुरेज नहीं होगा
जो तुम मुझे महान बनाने के लिए
मेरे हाथ से दान हुए
चंद सिक्कों की गिनती को असंख्य लिखो
मेरी बोली को बादल की गरज
मेरी चाल को सिंह की तरह लिखो

पर कहीं ये सच भी लिखना जरूर
कि आबनूसी माहौल में तैर जाते हैं
मेरी भी आँखों में वासनाओं के डोरे
हर आम इंसान की तरह...
उस क्षण के बारे में भी लिखना
हवस मुझपे होती है जब हावी

गर लिखो तुम युद्ध या शांति पर
मेरे फैसलों के बारे में
तो मत चूकना तुम ये बताना कि
मैं कभी न चुन पाया अपने वस्त्रों का रंग

दुश्मनों पर मेरे खौफ का असर कहने के
पहले या बाद अवश्य उल्लेख करना
बिल्लियों के रुदन से डर जाना मेरा..
मेरे बहादुर वक्तव्यों के साथ
कापुरुषी विचार भी बताना दुनिया को..

जहाँ भी लगाओ मेरी विजय के उपलक्ष्य में स्तम्भ
वहीं मेरी हार को भी अंकित करना..
क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा
एक तथाकथित महान
मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे..