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कठपुतल्यां / कन्हैया लाल सेठिया

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कठपुतल्यां ही बैठी देखै
कठपुतल्यां रो खेल।

गूमर भूल्यो मिनख आप नै
कद कठपुतळी मानै ?
कठपुतल्यां ही कणां आप नै
कठपुतळी कर जाणै ?

आपै स्यूं अणजाण डफोळा
मिल्यो एक सो मेळ।

कठपुतल्यां नै हंसती रोती
देख मानखो स्यावै,
पण भोळा अै कठपुतल्यां तो
थारी कूट कढ़ावै,

जीवंतड़ रै बैठ हलावै
ज्यूं ज्यूं डोर खिलारो,
‘‘खेलै खेला पूतळा समझै
ओ सो करतब म्हारो’’

पण दोन्यूं ही आंधा, कोनी
देखै घली नकेल।
कठपुतल्यां ही बैठी देखै
कठपुतल्यां रो खेल।