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कतार / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
भीड़
और शोर-शराबे का
दूसरा नाम है
मेरा शहर।
जहां पर मुझे
सुबह से शाम तक
लगना पड़ता है
कतार में
सिर्फ
चंद आवश्यकताओं के लिए।
मुझे लगना पड़ता है
कतार में
तेल के लिए
बस के लिए
बीमार होने पर
दवाई के लिए।
कई बार
अपनी पहचान तलाशता हूँ
सिर्फ राशन कार्ड में
जिसके लिए भी
मुझे लगना पड़ा था
कतार में।
कतार-दा-कतार में लगकर
इस शहर में
मैं कतरा-कतरा हो गया हूँ
आप जानते ही हैं
कतरे की कोई
पहचान नहीं होती।