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कन्यादान / कालीकान्त झा ‘बूच’
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आब बनवह विरान हय बेटी
चूबि जयतह ई नोर
डूबि जयतह ई ठोर
त्यागि थीर मुसकान हय बेटी
बेटे जका तो जनमलह आ बढ़लह
बेटो सँ बढ़िकऽ माईक मन भरलह
काका आ काकी लगक दुलरैतिन तो
अपना स्वभावे सभक मन हरलह
बाबाक ध्यान तो बाबीक जान तो
बापक परान हय बेटी
तोरा जनमिते परायल अन्हरिया
पाजे समटलहुँ हम पसरल इजोरिया
घऽरक कुमुदिनियाँ हम परक चननियाँ तो
ई कहऽ आयल कहौतियाक भरिया
आई धरिक पूनम तो काल्हिए सँ बनि जयवह
दुतियाक चान हय बेटी
लैह अशीरवाद करह अचले श्रृंगार तो
बनल रहह हुनक मुँग्धमनक शुद्ध हार तो
आशुतोष, मृत्युंजय शंकरे जमाइ हमर
जानि गेलहुँ पुत्री नहिं गौरी अवतार तो
हम कऽ देलहुँ दान
आइ भऽ रहलै ज्ञान
अहाँ बनि गेलहुँ हय बेटी