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कविता करना / सत्यनारायण सोनी

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रचने लगती जब
कविता
बज उठता
आटे का पीपा
ठन-ठन।

सुन पड़ते बोल
पत्नी के-
नून-तेल-लकड़ी,
ये चीज, वो चीज।

टटोलता है कवि
जेब अपनी
जानता है जबकि
खाली है वह
आटे के पीपे-सी।

सामने फडफ़ड़ा रहा
वह पन्ना
मंडी जिस पर
एक कविता
अधूरी।

1991