भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किनारा / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
हमरोॅ पूरा समुद्र छै
एक तरफें
आरोॅ तोंय छोॅ
एक तरफें
हम्में करी केॅ आबै छियौं
एक तरफ
आपनोॅ पूरा समुद्र
तोरा सें मिलै लेॅ
कि कहीं तोंय डूबी नै जा
हमरोॅ समुद्र में
हम्में खड़ा होय छियौं
तोरोॅ सामनें किनारा बनी केॅ
आपनोॅ समुद्र सें
तोरा बचाय वास्तें डूबै सें
तोंय कैन्हें उठाय दै छोॅ तूफान
हमरोॅ समुद्र में ।