भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किशोरी / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
वह अभी से हारी नज़र आती है। वह ज़मीन ही नहीं
थी जहाँ इस उम्र में फूल खिलते हैं। ओह! बीस बरस
बाद वह याद करेगी यह दिन। तब उस समय की उसकी
हार और कई गुणा बढ़ जायेगी।