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कुछ है / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
कोठरी से बरामदा
और बरामदे से कोठरी
दीवारें और सीढ़ियाँ
दस्तकें और फ़रमान
कोई रास्ता नहीं
बूटों और बन्दूकों के आगे
पीछे दीवार
और सामने
मौत की तनी हुई पतली सुरंग
मेरे सामने वह मरा पानी माँगते हुए
वह लम्बा गोरा नौजवान
मेरे सामने वह प्यारा काला लड़का
हुआ लहूलुहान
इन मरते हुए साथियों के साथ
उस दिन पुख़्ता हुआ था मेरा विश्वास
कि कुछ है
कुछ है जो महान है हमसे भी
जिसके लिए हम मर जाते हैं ।