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कुत्ते / नवीन सागर

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कुत्‍ते आदमी के सहज गुलाम हैं
आदमी के साथ वैसे वे अनमने उदास नहीं दिखते
जैसे घोड़े
न वैसे धीरजवान जैसे गधे
कुत्‍ते अक्‍सर आदमी की दुनिया में
अपनी जगह बनाते हैं
घरों में पूंछ हिलाने, भौंकने और काटने की तत्‍परता
उन्‍हें आदमी के काम का बनाती है
उन्‍हें पट्टे और जंजीरें मिलती हैं
जो आवारा होते हैं उनका सब कुछ बेकार जाता है
उनमें लड़ाइयां होती हैं उनमें से कईं पागल हो जाते हैं
कई तो म्‍यूनिस्‍पैलिटी वाले मार देते हैं
हाईवे पर ट्रकों मोटरों से कुचले जाते हैं
खाने के लिए उनकी बहुत जानमारी होती है
राह चलते लोग उनसे डरते हैं और पत्‍थर मारते हैं
पले हुए कुत्‍तों का उनसे कोई सम्‍बन्‍ध नहीं होता
बस्तियों में इस तरह कुत्‍तों के दो प्रकार मिलते हैं

कुत्‍तों का जीवन
आदमी के खेल का हिस्‍सा लगता है
वे जल्‍दी बूढ़े होते हैं
और बारह बरस के होते न होते मर जाते हैं
मैंने एक बूढ़े कुत्‍ते को
गरमियों की रात में
इतना निस्‍पृह देखा
कि जितना चांद निस्‍पृह था
और जितने तारे टिमटिमा रहे थे.