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कुम्भज्वर / धरीक्षण मिश्र

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 अमृतध्वनि छन्द

डकडर बिना न जात बा, अइसन बा बरजाद ।
आइल तीर्थ प्रयाग से, कुम्भज्जबर परसाद ॥
कुम्भज्जवर परसादध्धर तन कम्पत्थरथर ।
आँखझ्झरझर नाकसरसर साँस्घ्घरघर ॥
बन्दघ्घर मन मन्दत्‍तर निस्पन्ददि‍दनभर ॥
तारच्छिकत कपारध्धिकत पधार डकडर ॥12॥