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कैलेण्डर / ओम पुरोहित ‘कागद’

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कितना ही मनमोहक
क्यों न हो
दीवार पर टंगा
नए साल क कैलेण्दर
लेकिन
एक कमजोर से
धागे को
उसका भार
ढोना ही पड्ता है
साल भर !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"