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कौन / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
कौन सुनेगा
उसका ब्रह्माण्ड रोदन
क्या सुना भी जा सकता है
निर्वात में
कौन सूँघेगा
उसकी आत्मा से उठती अरघान
क्या सूँघा जा सकता है
मिट्टी के बगैर
कौन साक्षी होगा
उसके आत्मदाह का
क्या है कोई
जो जले साथ-साथ
चिता की लकड़ियों की तरह
कौन आप्त होगा
उसकी करुणा से
क्या द्रवित हुअर जा सकता है
बिना अडिग चट्टानों के
कहाँ गई प्राणवन्त वायु
कहाँ गई सोंधी माटी
लुप्त हो गये वन
पिघल गई चट्टानें
प्लास्टिक की गेंद भर है
पृथ्वी अब