भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खड़िया / पुष्पिता
Kavita Kosh से
					
										
					
					
चाँद ने 
अपना कोई
घर नहीं बनाया 
दीवारों से बाहर 
रहने के लिए। 
सूरज 
मकानों से
बाहर रहता है 
दीवारों को 
तपाने और पिघलाने के लिए 
प्रकृति में सृष्टि के लिए। 
चाँद 
वृक्षों की पात हथेली की मुट्ठी में 
अपनी रोशनी को 
बनाकर रखता है सितारा 
चाँद 
घरों के बाहर 
अपनी रोशनी से 
आवाज़ देता है कि 
अँधेरे में 
मेरी उजली चमक को देखो 
लगता है 
मैंने 
श्यामपट्ट 
खड़िया से लिखी है 
ईश्वर की उजली सृष्टि 
सूर्य के अस्त होने पर 
अंधेरों के खिलाफ़।
 
	
	

