भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाली हाथ / सीमा सोनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने अपनी भावनाएँ
मिट्टी में दबा दीं

अपने आँसू
रख दिए कमल की पंखुड़ियों पर
इच्छाओं को कर दिया विसर्जित
नदी में

सपनों को टांग दिया तारों पर

अपने दुख लौटा दिए मैंने
राहु और केतु को
सुखों को भेज दिया
देवलोक

बचा कर रखी मैंने अपने पास
सिर्फ़ अपनी साँस
क्योंकि साँस नहीं है
मेरे हाथ।