खीरा / शहंशाह आलम
कितना दिलचस्प रहा होगा
कितना अद्भुत
जब बकरियाँ चराते हुए
किसी चरवाहे ने
पतंग उडाते हुए
किसी पतंगबाज ने
पहली दफ़ा
खाया होगा
स्वदा होगा इसे
और रह गए होंगे
विस्मित
खीरे ने सार्थक किया होगा उन्हें
और उन्होंने खीरे को
ऐसे ही शुरू हुई होगी जन्म-कथा खीरे की
उन्हीं दिनों उन्हीं मनुष्यों में पृथ्वी पर
अपने प्राचीन-अतिप्राचीन रूप में
लाजवाब बना हुआ है खीरा
एक रहस्य की तरह बना हुआ है
अभी भी
जबकि इसे खाने के लिए
किसी अभ्यास
किसी प्रेमारम्भ की ज़रूरत नहीं पड़ती
एक दुनिया-सी बसी हुई है
क्या-क्या नहीं है इसके भीतर
इसके बाहर और अन्दर प्रदूषित कुछ भी नहीं है
न इसके किसी कालखंड में
न इसकी किसी शताब्दी में
जबकि यह समय आपसदारी का
सिद्ध हो रहा है
और यह विचारयोग्य है
विचारयोग्य यह भी है
कि आज उसने खीरा खिलाया
बड़े ही प्रेम से
बड़े ही मनोयोग से
जो गालियाँ खिलाया करता था रोज़
अभी पिछले ही पखवारे माउथ ओर्गन से
और लहरों पर हाथ मारकर
अमर धुनें निकालने वाली लड़की ने
किसी महाशोक में
अन्न-जल का त्याग कर दिया था
तब मैंने उसे हरा-ताज़ा खीरा ही दिया था
इसलिए कि खीरे में अन्न भी है
और जल भी
यह कतई अद्भुत नहीं है
कि खीरा आपको उतना ही प्रिय है
जितना कि मुझे