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खेजड़ी / मीठेश निर्मोही
Kavita Kosh से
घोर अकाल में
अभावों के दिन
सौंप दी थी हमें
तुमने अपनी देह
वक्ष तुम्हारे छीलकर
मिटा ली थी हमने
आंतो की आग...
तुम्हारे ही सबब बना रहा
अस्तित्व
हम कैसे भुला दें तुम्हें
ऐसे कृतघन तो नहीं हम
खेजड़ी!