भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खोतामे / चंदन कुमार झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीत भरिक खोतामे
रहैछ अटावेश
चुनमुन्नीकेँ आपसमे
रहैत छैक
कतेक आवेश?
दुःखक नहि छूति
सुखक नहि बिथुति
बीत भरिक खोतामे

अकासक
अनन्त विस्तारकेँ
नपबा लेल
उड़ैत अछि सबदिन
हारि-थाकि
घुमैत अछि सबदिन
मुदा,
हारिक नहि क्लेश
चिन्ताक नहि लेस
आशा अछि शेष
बीत भरिक खोतामे