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खोल दो / प्रताप सिंह
Kavita Kosh से
अनबोली घुटन में पस्त
मेरा चेहरा
मेरा कमरा
मेरा दफ़्तर
मेरा देश
भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है
भीतर कोई है
जो हवा बारूद से
ज़मीन, खिड़की, सड़क को
आसमान तक ले जाकर
खोल देगा