गंढाँ / बुल्ले शाह
दूजी खोलूँ क्या कहूँ,
दिन थोड़े रहिन्दे।
सूल सभ रल आवंदे,
सीने विच्च बहिन्दे।
झल्ल-वलल्ली मैं होई,
तन्द कत्त ना जाणा।
जंझ ऐवें रल आवसी,
ज्यों चढ़दा ठाणा।
तेरा गंढीं खुल्लिआँ नैण लहू रोन्दे।
होया साथ उतावला, धोबी कपड़े धोन्दे।
सज्जण चादर ताण के सोया विच्च हुजरे<ref>मसिजद के अन्दर कोठड़ी</ref>।
अजे भी ना ओह जागेआ दिन कितने गुज़रे।
बाई खोहलो पहुँच के हभ मीराँ<ref>अमीर व बादशाह</ref> मल्काँ।
ओहना डेरा कूच है मैं खोहलाँ पल्काँ।
आपणा रैहणा की कराँ केहड़े बाग दी मूली।
खाली जग्ग विच्च आए के सुफने पर भूली।
इक्क इक्क गंढ नूँ खोल्हिआँ इकत्ती होइआँ।
मैं किस पाणीहार<ref>पानी भरने वाली गोली बाँदी</ref> हाँ एत्थे केतिआँ रोइआँ।
मैं विच्च चतर खडारसाँ दाअ प्या ना कारी।
बाज़ी खेडाँ जित्त दी मैं एत्थे हारी।
कर बिसमिल्ला खोहलीआँ मैं गंढाँ चाली।
जिस आपणा आप वंझाया सो सुरजन आवे।
जंझ सोहणी मैं भाँवदी लटकन्दा वाली।
जिस नूँ इश्क है लाल दा सो लाल हो जावे।
अकल फिकर सभ छोड़ के सहुनाल सिधाए।
बिन कहणों गल्ल गैर दी असाँ याद ना काए।
हुण इन्न अल्लाह आख के तुम करो दुआई।
पीआ ही सभ हो गया अबदुल्ला<ref>भगवान का पुजारी</ref> नाहीं।