गढ़वाली ठाट / लीलानन्द
”गुन्दरू का नाम बिटे <ref>से</ref> सिंगाणा<ref>सींप</ref> की धारी छोड़िक
वे को कुख वे की झगुली इत्यादि सब मेंला छन, गणेशू की सिपर्फ सिंगाणा की
धारी छ पर हौरी चीज सब साफ छन। यां को कारण, गुन्दरू कि मां अल
गसी<ref>आलसी</ref>, खलचट<ref>बुरी</ref> और लमडेर<ref>पड़ी रहने वाली</ref> छ। मित्तर देखादों बोलेंद यख बखरा<ref>बकरियाँ</ref>, रंहदा
होला, मेलो<ref>फर्श</ref> खणेक धुलपट होयू छ, मितर तब की क्वी चीज इर्थे क्वी चीज
उथैं। सांरा मितर तब मार घिचर पिचर होई रये। अपणी अपणी जगा हर
क्वी चीज नी। मांडा-कूंडा ठोकरियूं मां लमडण रंदन, पाणी का भाडज्ञें तक
तलें देखा दों, धूल को क्या गद्दो जम्यू छ। यूं का मितर पाणी पेंण को भी
मन नी चांदो। नाज पाणी की खत फोल, एक माणी पकोण कू तिकालन त
द्वी माणी खतेई जांदन, अर जु कै डूम<ref>डोम</ref>-डोकला, मिखलोई सणी देणां कू
बोला त हे राम! यां को नौ नी’।“