भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गद्यमयी / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
गद्यमय
हो गई हो तुम
अब से
मैं मानूंगा
तुम्हें ही अपना निकष,
खींचूंगा
तुम घ्पर मैं रेखा सुवर्ण की ।