भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गहरे तहखाने / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
ईश्वर को
किसने देखा
कभी रोते हुए
शायद इसीलिये
तुमने
कभी नहीं भरी हिचकी
क्या गहरे तहखाने
हम लोग
इसी खातिर बनाते हैं मां ?
अनुवाद :- कुन्दन माली