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ग़ज़ल दूठिन / लाला जगदलपुरी
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1.
मां भुइयाँ के, नाँव गवाँगे,
गाँव-गाँव में गाँव गवाँ गे,
खोजत खोजत पाँव गवाँ गे।
अइसन लहंकिस घास भितरहा,
छाँव छाँव में छाँव गवाँ गे।
अइसन चाल चलिस सकुनी हर,
धरमराज के दाँव गवाँ गे।
झोप-झोप में झोप बाढ़गे,
कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे।
जब ले मूड चढ़े अगास हे,
माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे।
2.
खेत-खार में, भूख अकर गे
बनी करइया भूखन मरगे,
ब्लैक करिस तेखर घर भरगे।
करम फाट गे, जऊंहर होगे,
खेत-खार में भूख अकर गे।
मन के मयाँ नदागे भइया,
पेट, पीठ के गांव अमरगे।
नाँव बुतागे हे अंजोर के,
सबों डहर आँधियार समहरगे।
पहुना बन के जउने आइस,
घर में जइसे नाँग खुसरगे।