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गुडिय़ा (2) / उर्मिला शुक्ल
Kavita Kosh से
बच्ची को जन्म देकर
तुष्ट नहींहोता
मातृत्व
गर्व से उठता नहीं
मस्तक
अतृप्त मन
चाहने लगता है
कुछ और
गुडिय़ों के ढेर पर
बैठा उसे
करने लगता है उसके
गुडिय़ा बन जाने का
इंतजार