भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरु महिमा / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गुरु बिनु ऐसी कौन करै ?

माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै ।

भवसागर तैं बूड़त राखै, दीपक हाथ धरै ।

सूर स्याम गुरु ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरै ॥1॥