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घंटी / असद ज़ैदी
Kavita Kosh से
धरती पर कोई सौ मील दूर सुस्त कुत्ते की तरह पड़ा हमारा दर्द
अचानक आ घेरता है नए शहर में
तेज़-रफ़्तार वाहन पर बैठे-बैठे
आँखें मुंद जाती हैं मेज़बान अचंभे में पड़ जाते हैं :
तुम ये क्या कर रहे हो वह पूछते हैं
हम विदा हो रहे हैं
हम विदा हो रहे हैं पारे की बूँदों की तरह
हम विदा हो रहे हैं चमकते हुए
हम क्या कर रहे हैं दोस्तों ? हम विदा हो रहे हैं
आकाश एक तंग छतरी बनकर रह गया है इस जगह की
हर चीज़ मेरे गले तक आ गई है
दिन की यह निर्णायक घड़ी एक सतत घंटी बनकर
टनटना रही है सलाम !
मैं अब जाऊँगा