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चारों तरफ / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
धूप कम होती है दृश्य छाया में बदल जाते हैं
धूप बढ़ती है दृश्य प्रकाश में
हम बढ़ रहे हैं आगे और दाहीनी तरफ
जहाँ घास की चादर हैं लेकिन समतल नहीं
अपने में उठान और ढलान लेते हुए
बीच-बीच में छोटे-छोटे घर और उनके साथ पेड़
और किनारे-किनारे फूल अपनी खुशबू छोड़ते हुए
कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दिया यहाँ
चारों तरफ केवल सौन्दर्य ही सौन्दर्य
और उसे निहारने वाला एकमात्र मैं ।