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चूड़ीबाला / परमानंद ‘प्रेमी’
Kavita Kosh से
हे हो चूड़ीबाला काल ऐहऽ हमरा कन।
भरी-भरी हाथ चूड़ी पिनभौं लेभौं दू दर्जन॥
कल’-कल’ चूड़ी पिन्हैहऽ लचपच करै कलैया।
सोलऽ बरस के चढ़ती उमरिया पियबा छै अबैया॥
कटियो टा टोकर लागतै त’ बाजतै खना-खन।
हे हो चूड़ीबाला काल ऐहऽ हमरा कन॥
कोन-कोन रंगऽ के चूड़ी लानभौं कल’-कल’ पिन्हाय ल’?
रात अन्हरिया सांझ होय गेलऽ घरबा दूर छ’ जायल’॥
जल्दी सें बतलाय द’ गोरिया पियबा के पसन।
हे हो चूड़ीबाला काल ऐहऽ हमरा कन॥
पिया पसन केना बतलैहौं छोड़ी क’ गेलऽ बिदेशबा।
हरी-घुरी टक-टक बाट जोहैं छी मनों नैं लागै घरबा॥
सांझ होय गेल्हौं त’ रात गुजारऽ सुनों छ’ ऐंगना।
हे हो चूड़ीबाला काल ऐहऽ हमरा कन॥