भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चूहे / नवीन सागर
Kavita Kosh से
शेर वगैरह जब गिने-चुने होते हैं
चूहों को गिना नहीं जा सकता
वे धरती के नीचे से
अगर एक साथ निकलना शुरू करें
तो धरती पर
किसी के लिए जगह न होगी
ओ बिल्ली! तूने उसे मुँह में दबाया
तेरा भोजन! तू जा!!
पर वे क्या खाएँ अगर
उनके खाने पर आदमी का कब्ज़ा है
उन्हें घेर-पकड़कर मारने वालों को नहीं पता
कि अगर उनके दिमाग़ में आ जाए
तो वे सब को कुतर डालें
बिलों में खींच ले जाएँ
भगवान ने इसलिए उन्हें दिमाग नहीं दिया
ताकि प्राणियों में उसका श्रेष्ठ प्राणी
यह मनुष्य बचा रहे
भगवान
अपनी हर चीज़ की कीमत पर जिसे
बचा रहा है
उससे बच, चूहे!