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छवि / नीरज दइया
Kavita Kosh से
तुम्हारी घबराहट से
होने लगती है-
मुझे भी घबराहट।
हर मौसम का है
अपना एक रंग
घबराहट में बिखर कर
बदल जाते हैं रंग
अमूर्त चित्र में
दिखने लगती है-
कोई मूर्त छवि।