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ज़मीन / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
पेड़ जब भी होते हैं तबदील
मिठाई में
वे अपने बीज समेत बाँटते हैं
ज़मीन की मिठास
मैं लाल-पीले सेब को टुकडों में काटकर
चखता हूँ ज़मीन का स्वाद
वह पहले मीठी
बाद में खट्टी लगती है
अपना स्वाद बदल रही है ज़मीन।
दरख़्तों की टहनियों पर जिन्दा है
ज़मीन का रंग
आदमी की जीभ पर
ज़मीन का स्वाद
यह फलों की गुठलियों पर
बात करने का दिन है
ज़मीन की तकलीफ़ में
शामिल होने का दिन
हम पेड़ों की मार्फत
ज़मीन की खटास पर बात करेंगे।