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जागरण / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
संसार के तरुण जगे
प्रत्येक के नयन जगे
विद्रोह-अग्नि से दिशा जली,
दिशा जली !
हुंकार जन-चरण बढ़े
ललकार जन-चरण बढ़े
लो साम्य-सूर्य से निशा मिटी,
निशा मिटी !
जन-शक्ति का प्रहार है,
उन्मुक्त राह-द्वार है,
नव विश्व-सृष्टि है —
उषा जगी,
उषा जगी !