भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवण / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
जीवण
फगत लोक संगीत‘ई नीं
जिकै नै सुणता रैवां आखी उमर!
जीवण
शोक संगीत भी है
जिकै नै सुणनौ है बाद मौत रै भी।
क्यूं कै
लोक संगीत ई पैदा हुयौ है
कोख स्यूं शोक संगीत री!