भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन-ज्वाला / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
यह मम जीवन-ज्वाला इसको
तुम धू-धू स्वर में गाने दो !
प्राणों के सारे अशिव-भाव
इस ज्वाला में जाएंगे जल,
जीवन के राग-विराग सभी
इसमें हो जाएंगे ओझल,
मन को कलुषित करने वाला
धूम्र विषैला उड़ जाने दो !
आँसू मत लाना, आँसू से
ज्वाला ठंडी पड़ जाएगी,
आहें मत भरना; आहों से
वह सीमित ना रह पाएगी,
इसको तो प्रतिपल जीवन के
सम्पूर्ण गगन में छाने दो !
1941