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जुनून / केशव
Kavita Kosh से
रिश्तों का जुनून होता है
एक उम्र तक
फिर फूलने लगता है दम
दर्द झाँकता है हर झरोखे से
हर बात में दिखाई देता है खम
फिर रिश्तों के खोखले में बैठ
आदमी ढूँढता है परिभाषाएँ
सितारों को जोड़ता है परस्पर आकर्षण
फिर भी एक अलग है दूसरे से
जरूरी नहीं कि उम्र को
नहलाया जाये खिजाब से
शब्दों से मापी जायें
रिश्तों की गहराइयाँ
एक-दूसरे में जाने के लिए
खामोशी भी एक
पुरअसर ज़रिया होता है
हर मौसम में
एक ही तरह के फूल रोपकर
अलग-अलग गँध उनमें खोजता है
पर बाहर की हवा को
आँगनबाड़ी में आने से रोकता है.